छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले से ही गौरैला- पेण्ड्रा- मरवाही को जिला बनने की मांग होती रही, लेकिन अब जाकर हुई पूरी
पेण्ड्रा– 3 जुलाई 1998 के राजपत्र में पेंड्रारोड़ जिला नाम आया, पर किसी कारण से जिला अस्तित्व में नही आ पाया. मगर क्षेत्रवासियों ने हिम्मत नही हारी लगातार जिले की मांग की क्षेत्रवासियो द्वारा जाती रही है . चूंकि मरवाही क्षेत्र राजनीति में काफी मशहूर रहा है मगर जमीनी हकीकत की बात की जाए तो क्षेत्र में न तो उचित स्वास्थ सुविधा रही और न ही सड़को ही हालात ठीक रही है . कोई भी अधिकारी इस क्षेत्र में आने से भी कतराता था ..नेतृत्वहीन होने की वजह से लगातार हमारा क्षेत्र उपेक्षा का शिकार होता रहा . हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को महज सिर्फ आश्वाशन ही दिया जाता रहा क्षेत्रवासियो को . वही तत्तकालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के 15 साल के कार्यकाल में मेरी जानकारी अनुसार सीएम साहब तीन बार ही पेण्ड्रा आये थे . तब भी उनसे जिले की मांग को लेकर बात रखी गई मगर सिर्फ आश्वाशन ही दिया गया . जिले के नाम पर राजनीतिक रोटी सेकी जाती रही मगर जिला नही बन पाया …
1 जनवरी 2012 में मुंगेली जिला बना जिसकी बिलासपुर जिले से दूरी महज 40 किलोमीटर है जबकि बिलासपुर जिले से पेण्ड्रा की दूरी लगभग 100 किलोमीटर दूर है . मगर हमारा क्षेत्र राजनीति का शिकार होता रहा और जिला नही बना . अब जब 15 साल के वनवास के बाद कांग्रेस की सरकार आई तो प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने हमारे क्षेत्र को नए जिले की सौगात 15 अगस्त 2019 को दी . जिससे पूरा क्षेत्र झूम उठा जैसे बरसो पुरानी मांग पूरी हो गई हो . जिले की घोषणा के बाद नाम और मुख्यालय पर लोगो मे आपसी सामजस्य नही बैठ पा रहा था . जिसका निराकरण भी नए जिले का नाम गौरेला पेण्ड्रा मरवाही कर तीनो जगह के साथ सामंजस्य बैठाया गया मुख्यालय भी पेण्ड्रा और गौरैला के बीच बन रहा है जिसमे लगभग सभी लोग संतुष्ट है . अब नया जिला गौरैला पेण्ड्रा मरवाही 10 फरवरी को अस्तित्व में आ जायेगा अब हम सभी का फर्ज बनता है इस नए जिले के विकास के बारे में सोचे कैसे इस नए जिले का स्वरूप होगा इसमे सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी ही नही हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा कि हम अब अपने इस जिले को कैसे विकास के रास्ते मे लाएंगे..
आइये मिलकर इसकी योजना बनाते है और इस योजना को प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से उनके सहयोग से पूरा करते है।
अब बात करते है हमारे क्षेत्र के भूगोलिक वातावरण की चूंकि हमारा यह क्षेत्र एशिया महाद्वीप के ग्रीन बेल्ट कहलाता है जहाँ खूबसूरत वादियां है यहाँ आने वाले का मन मोह लेती है . जहाँ साल , सरई , सागौन , के जंगल बहुतयात है साथ ही हमारा यह क्षेत्र भालु लेण्ड के नाम भी जाना जाता है जहाँ सफेद भालू जैसी दुर्लभ प्रजाति भी पाई जाती है एक आंकड़े के मुताबित मरवाही क्षेत्र में लगभग 400 भालू आज भी है . सबसे पहले तो हमे इसपर विचार करना होगा कि कैसे इन जंगलों को और वन्य प्रजाति को बचाकर हम क्षेत्र का विकास कर सकते है . इसमे सभी को अपने विचार जरूर रखने चाहिए जिसके प्रयास के जंगलों को और वन्य प्रजातियों को बचाया जा सके . चूंकि एक प्रजाति का विनाश समूची प्रजाति का विकास कहलाता है इसलिए सर्वप्रथम हमको हमारी धरोहर को बचाना है इसपर कार्य करके ही हम विकास के रास्ते मे आगे बढ़ सकते है..
बात करे हमारे क्षेत्र के पर्यटक स्थलों की तो हमारे इस क्षेत्र में प्रकृति ने खूबसूरती से सजाया है . जहाँ से कई नदियों का उदगम स्थल है जैसे शुरुआत गौरैला से करे तो गौरैला क्षेत्र के आने वाले पर्यटक स्थल में जालेश्वर धाम जहाँ से जोहिला नदी का भी उदगम स्थल है . राजमेढ़गढ़ जहाँ की खुबसुरत वादियां पर्यटकों का मन मोह लेती है जो ऊची पहाड़ियों में बसा है मेरे कुछ दोस्त है जो लगभग हर महीने राजमेरगढ़ में सन राईजिंग देखने आते है . इसके बाद ओंकारेश्वर मंदिर , भिल्लमगढ़ , अचानकमार टाइगर रिजर्व एरिया , भैरवसांग , दुर्गा धारा , धमपानी , अमाडोब रिसोर्ट , लक्ष्मणधारा जो आजकल पिकनिक स्पॉट बन चुका है , वही 1984 के नर्मदा रेल हादसे के बाद रेलवे और फारेस्ट विभाग द्वारा बनाई गई भंनवारटक की मरही माता का मंदिर जहाँ दूर दूर से लोग दर्शन करने पहुचते है जहाँ खूबसूरत वादियों के बीच माँ मरही माता बसी हुई है , वही खोडरी से अरपा नदी का उदगम स्थान , बस्तिबगरा स्थित झोझा जलाशय , वही यहाँ की आवोहवा ऐसी है जहाँ टीवी के इलाज के लिए गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर 1902 में अपनी पत्नि का इलाज कराने सेनेटोरियम हॉस्पिटल आये थे..
वही पेण्ड्रा में गढ़ी जो छत्तीसगढ़ राज्य के एक गढ़ो में शामिल है , तिपान बम्हनी सोन नदी का उदगम स्थान , गणेशधाम , गोढा का मंदिर जहाँ भगवान को जंजीरों में कैद करके रखा गया है , 84 बांध , खुज्जी जलाशय , घाघरा जलाशय , इंदिरा उद्यान जिसे संवारने की काफी जरूरत है।
वही मरवाही में धनपुर देवी मंदिर है जहाँ कहा जाता है कि पांडवो ने अपना 1 साल का अज्ञातवास यही बिताया था जहाँ आज भी भीम के खोदे हुए तालाब नजर आते है , बेनी बाई (महावीर ) की विशालकाय पत्थरो में उकेरी गई मूर्ति , भष्मासुर की गुफाएं , प्रशिद्ध नाटेश्वरी देवी का मंदिर , समुदलई , गंगनई बांध , लखनघाट जहाँ मकर संक्रांति में भव्य मेला भी लगता है जहाँ की आवोहवा यहाँ आने वालो का मन मोह लेती है।
चूंकि अब हम नए जिले में आने वाले है तो हमे इसको कैसे संवारना है इसकी जिम्मेदारी भी हमे ही लेनी होगी . इन जगहों में अगर पर्यटक स्थल बनाया जाता है और ज्यादा से ज्यादा लोगो को इसकी जानकारी दी जाती है तो निश्चित तौर पर यह पर्यटन स्थल के रूप में आएगा जिससे लोगो भी इन सभी जगहों की जानकारी हो पाएगी और लोग दूर से जब आएंगे तो उन्हें घूमने को काफी खूबसूरत जगह मिलेगी जिसकी वजह से क्षेत्र का नाम होगा साथ ही इसका विकास भी हो पायेगा जिससे शासन को राजस्व भी मिलेगा और लोगो मे रोजगार का भी सृजन हो पायेगा …
बस सबसे पहले हमें इस क्षेत्र में हो रहे अवैध उत्खनन , अवैध जंगलों की बेतहासा कटाई , वन्य प्राणियों के शिकार पर रोक लगाना होगा जिससे हम हमारी प्राकृतिक धरोहर को बचा पाएंगे..