नंद कुमार शुक्ल ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ी को लेकर बुलंद की आवाज..छत्तीसगढ़ी को मिलना चाहिए राजभाषा का दर्जा..

बिलासपुर । किसे कहते हैं मातृभाषा ? आखिर क्या है परिभाषा मातृभाषा की.. क्या सचमुच हिन्दी हमारी याने हम सब की मातृभाषा है या वह एक भाषा मात्र है.. जो सांस्कृतिक दृष्टि से हमारी “राष्ट्रभाषा” और सम्वैधानिक दृष्टि से केन्द्रीय “राजभाषा” मात्र है जिसे सम्पूर्ण देश के लिए एक सम्पर्क-भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास अभी तक चल ही रहा है।
यदि हिन्दी समस्त भारतवासियों की मातृभाषा है तो फिर बताइये कि निज-भाषा याने मातृ-भाषा का महिमा-मण्डन करने वाले बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा उनकी अपनी मातृभाषा में निम्नलिखित कवितांश की भाषा का नाम क्या है.. छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले नंद कुमार शुक्ल ने कहा कि.. दरअसल हिन्दीभाषी क्षेत्र याने उत्तरभारत क्षेत्र में मातृभाषा को लेकर अभी तक काफी भ्रम फैला हुआ है.. चूँकि वहाँ प्रारम्भिक पढाई-लिखाई की माध्यम-भाषा हिन्दी है इसलिए हिन्दी को लोग मातृभाषा मानने लगे अन्यथा सचाई तो यह है कि खड़ी बोली, ब्रज , बुन्देली, बघेली, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही , मालवी, निमाड़ी आदि जैसी भाषाएँ उनकी अपनी मातृभाषाएँ हैं जिन्हें उन्होंने अपनी-अपनी माताओं के गर्भ से ही सीखना प्रारम्भ किया था.. उसी प्रकार गैर-हिन्दीभाषी क्षेत्रों में पंजाबी, गुजराती, मराठी, बंगाली , छत्तीसगढ़ी, गोंडी,हलबी, भतरी, सदरी,कुड़ुख, उड़िया, कन्नड़, मलयालम, तमिल, तेलुगु, असमिया आदि भाषाएँ ही मातृभाषाएँ हैं.. तो फिर, हिन्दी हम सबकी मातृभाषा कैसे हो सकती है ? केवल बोलने-लिखने-पढने मात्र से ही तो हिन्दी चाहे जिसकी मातृभाषा नहीं हो जाएगी.. ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेजी माध्यम से पढ़-पढ़ के कान्वेंटी-कल्चर अपनाने वाले किसी मराठी, बंगाली व्यक्ति या परिवार की मातृभाषा अंग्रेजी नहीं हो जाएगी.. गुजराती मातृभाषी हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बहुत अच्छी हिन्दी बोल-लिख-पढ़ सकते हैं इतने मात्र से उनकी मातृभाषा हिन्दी कैसे हो जाएगी.. बेल्जियम मूल के विदेशी विद्वान कामिल बुल्के हिन्दी के प्रकाण्ड पण्डित थे जो धाराप्रवाह उच्चस्तरीय हिन्दी बोलते थे तो क्या इतने मात्र से उनकी मातृभाषा हिन्दी हो जाएगी ?.. मातृभाषा को लेकर फैले इसी भ्रम को दूर करने के लिए ही पिछली जन-गणना के समय निर्वाचन आयोग द्वारा स्पष्ट परिभाषा देते हुए कहा गया था कि” मातृभाषा वह बोली/भाषा है जो किसी व्यक्ति के बचपन में उसकी माता ने उससे बोलने के लिए प्रयोग की हो.. यदि सम्बंधित व्यक्ति के बचपन में उसकी माता का देहान्त हो गया हो तो उसकी मातृभाषा वह होगी जो उसके बचपन में उसके घर पर मुख्यत: बोली जाती हो.. छोटे बच्चों और मूक-बधिरों की मातृभाषा वह मानी जाएगी जो उनकी माताएं आमतौर पर बोलती हैं.. यदि कोई शंका हो तो उस परिवार में आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा को दर्ज करें.. यह आवश्यक नहीं कि मातृभाषा के रूप में बताई गई भाषा की कोई लिपि हो”….फिर भी बहुतांश शिक्षित-छत्तीसगढ़िया अभी भी भ्रम में हैं, वे अपनी मातृभाषा-छत्तीसगढ़ी को मात्र एक बोली मानकर हिन्दी को ही अपनी मातृभाषा मानते हैं । ऐसे लोगों को ही स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे–“पठित मूर्ख”.. खाल्हे के पठोय गे ए अब्बड़-परसिद्ध कबिता-फोटू के कबि के नाँव ल जानत हव का.. ए कबिता ह कोन भासा मँ हे, बताय सकिहा का.. एमा लिखाय ‘निज-भासा’ के मतलब का ए ? एमा काखर जस-गीत गाय गे हे ? ‘महतारी-भासा’ के, के रास्ट-राजभासा या समपरक-भासा ‘हिन्दी’ के बिचारिहा जरूर ..