जीपीएम – साल 2019 में एक प्रसिद्ध मीडिया संस्थान ने देशभर के पत्रकारों पर हो रहे हमलों की सूरत बयान कर रहे अध्ययन की ख़बर प्रकाशित की। ये अध्ययन बताता है कि बीते पांच सालों में भारत में पत्रकारों पर 200 से अधिक गंभीर हमले हुए हैं। इसके मुताबिक 2014 से 2019 के बीच 40 पत्रकारों की मौत हुई, जिनमें से 21 पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता की वजह से हुई.

2010 से लेकर अब तक 30 से अधिक पत्रकारों की मौत के मामले में सिर्फ तीन को दोषी ठहराया गया है. अध्ययन के मुताबिक इन हत्याओं और हमलों के दोषियों में सरकारी एजेंसियां, सुरक्षाबल, नेता, धार्मिक गुरु, छात्र संगठनों के नेता, आपराधिक गैंग से जुड़े लोग और स्थानीय माफिया शामिल हैं. अध्ययन में कहा गया कि 2014 के बाद से अब तक भारत में पत्रकारों पर हमले के मामले में एक भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया गया.

ख़बर की शुरुआत में ही इस अध्ययन का ज़िक्र इसलिए किया गया ताकि पाठक इन घटनाओं की गंभीरता महसूस कर पाए

अब शीर्षक में बताई घटना पर आते हैं – जीपीएम जिले में इन दिनों कोयला क्रेसर कारोबारियों के हौसले बुलंद है जहाँ खबर छापने पर पत्रकारों को जान स मारने और झूठी शिकायत में फंसा देने की धमकी दी जा रही है. आपको बता दे कि पेण्ड्रा के रहने वाले आशीष केसरी जो कि कोयला कारोबारी और क्रेशर संचालक है. इसके द्वारा मरवाही इलाके के डड़िया गाँव में पत्थर तोड़ने का काम व्यापक पैमाने पर किया जाता है जिसके लिए बड़े स्तर पर ब्लास्टिंग की जाती है. इस ब्लास्टिंग ने ग्रामीणों का जीवन नर्क कर दिया है. अनेकों बार इस संबंध में विभागों को शिकायतें भी की गई हैं लेकिन विभागों में गुलाबी पत्तियों का ज़ोर चलता है, गरीबों की अर्ज़ियां बेनतीजा ही रद्दी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में डड़िया के लोगों की समस्याओं पर जब स्थानीय पत्रकार ने छानबीन करनी शुरू की तो पहले उन्हें लालच दिया गया, उससे दाल नहीं गली तो अब उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है। पेंड्रा थाने में इनके खिलाफ़ झूठी शिकायत भी की गई है.

फ़्री प्रेस की पैरवी करते हैं राहुल गांधी

पत्रकार को जान से मारने की धमकी देने वाली इस ख़बर को पढ़ते हुए आपको ये बात ज़रूर ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रदेश में इस समय कांग्रेस की सरकार है। राहुल गांधी देशभर में घूमघूम कर फ़्री प्रेस की पैरवी करते रहते हैं। फ़्री प्रेस याने पत्रकारों के लिए लिखने बोलने की आज़ादी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने का वादा किया था। तीन साल बाद अब उस वादे की कोई चर्चा नहीं होती।

नई सरकार आने के बाद से छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के साथ मारपीट, जान से मारने की धमकी देने और फर्ज़ी शिकायतें दर्ज कराने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। लालच में न आने वाले और सच लिखने वाले पत्रकार को अपने ऊपर आ सकने वाले पेशेगात ख़तरों का थोड़ा अंदाज़ा तो हमेशा ही रहता है, लेकिन उसे इस बात की थोड़ी सी उम्मीद भी रहती है कि प्रशासन और सरकारें भ्रष्टाचारियों की गोद में नहीं बैठ जाएगीं।

यह महत्वपूर्ण बात है कि इस आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीण चीख चीख कर अपने पैतृक निवास स्थान को बचाने के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं मगर ब्लास्टिंग की गूंज इतनी तेज है कि ग्रामीणों की आवाज दबा दी जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्रेशर संचालक और कोयला कारोबारियों के हौसले कितने बुलंद हैं।

By GiONews Team

Editor In Chief