सावन का पहला सोमवार.. शिव मंदिरों में उमड़ी भक्तों भीड़.. जानिए बूढ़ा महादेव की महिमा.. देखिए वीडियो..

सावन का पहला सोमवार.. शिव मंदिरों में उमड़ी भक्तों भीड़.. जानिए बूढ़ा महादेव की महिमा.. देखिए वीडियो..

बिलासपुर– कहते है सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का महीना है शास्त्रों के अनुसार इस पूरे महीना भगवान पृथ्वी पर रहते हैं इसलिये हर शिव लिंग में शिव का वास माना जाता है लेकिन हम आपको सावन के इस पावन महीने में एक ऐसे अदभूत,अलौकिक,और रहस्यमय शिवलिंग के बारे में बताने और दर्शन कराने जा रहे है जिसके दर्शन मात्र से आपका रोम रोम शिवमय हो जायेगा।

मां महामाया की नगरी रतनपुर जिसे लहुरीकाशी
के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर रामटेकरी के ठीक नीचे स्थापित है बूढा महादेव का मंदिर इस मंदिर को वृध्देशवरनाथ के नाम से भी पुकारा और जाना जाता है।

बूढ़ा महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू है और यदि इसे गौर से देखें तो भगवान शिव की जटा जिस प्रकार फैली होती है ठीक उसी प्रकार दिखाई देता है। शिवलिंग के तल पर स्थित जल देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरी आकाशगंगा या ब्रम्हांण्ड इसमें समाया हुआ हो। इस शिवलिंग में जितना भी जल अर्पित कर ले उसका जल उपर नहीं आता और शिवलिंग के भीतर के जल का तल एक सा बना रहता है, इस शिवलिंग पर चढाया जल कहां जाता है, यह आदिकाल से आज तक इस रहस्य को कोई ना जान सका। सावन के पवित्र माह में भगवान शिव के इस अदभूत शिव लिंग पर जलाभिसेक करने हजारों की तादात में श्रध्दालूओं की भीड उमडती है। कांवरिये अपने कांवर का जल लेकर बूढा महादेव को चढाते है। 


दूर-दराज से श्रध्दालु यहां आकर भगवान शंकर को चढ़ाते हैं जल
   
वृध्देष्वरनाथ मंदिर प्राचीन मंदिर है 1050 ई में राजा रत्नदेव दवारा इस मंदिर का र्जीणोध्दार किया गया था।  यह मंदिर कितना पुराना है इस बात की जानकारी नही है। इस मंदिर को लेकर अनेक किवदंती है उसके बारे में बतलाते हुए कहते है कि वर्षो पहले एक वृध्दसेन नामक राजा हुआ करता था। जिसके पास अनेंक गाये हुआ करती थी जिसे लेकर चरवाहा जंगल में चरानें जाता था तो उसके साथ चरने गई गायों में एक गाय झुण्ड से अलग होकर बांस के घने अंधेरे में धुस जाया करती थी और वहां अपने थनों से दुग्ध क्षरण कर रुद्राभिशेक किया करती थी, यह कार्य प्रति दिन होता था। चरवाहे ने गाय का रहस्य जान इस बात की जानकारी राजा रुद्रसेन को दी। राजा ने भी इस बात की पुष्टि कर आश्चर्य किये बिना ना रह सका। लेकिन राजा को बात समझ नहीं आई उसी रात भगवान ने राजा को स्वप्न देकर अपने होने का प्रमाण दिया और उस स्थान पर मंदिर बनाये जाने और पुजा किये जाने की बात कही। और इस प्रकार राजा वृध्दसेन ने अपने नाम के साथ भगवान का नाम जोडकर मंदिर का नाम वृध्देष्वरनाथ मंदिर रखा। आज भी भक्तो के साथ साथ कांवरिये आते है और भगवान भोलेनाथ को जल जढा अपनी मनोकमना करते है। 

GiONews Team

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