जेल के चार दिवारी में बेकसूर बचपन : 26 मासूम बच्चों की सलाखों में कट रही ज़िन्दगी, कसूर इतना की माता-पिता काट रहे सजा..

जेल के चार दिवारी में बेकसूर बचपन : 26 मासूम बच्चों की सलाखों में कट रही ज़िन्दगी, कसूर इतना की माता-पिता काट रहे सजा..

बिलासपुर – छत्तीसगढ़ के बिलासपुर सेंट्रल जेल में 26 मासूम बच्चों का बचपन सलाखों में कैद होकर रह गया है। इनका कसूर सिर्फ इतना है कि इनके माता-पिता जेल में सजा काट रहे हैं। ऐसे में उन्हें मजबूरन जेल की चार दिवारी में उनके साथ जीवन बिताना पड़ रहा है। ऐसे में इन मासूम बच्चों का शोर-शराबा, उधम मचाना, चीखना व चिल्लाना, मौज-मस्ती और शैतानी का बचपन जेल की चार दीवारी में ही कैद होकर रह गया है।

केंद्रीय जेल बिलासपुर में 26 बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता हत्या जैसे संगीन अपराधों में सजा काट रहे हैं। इनमें से कुछ बच्चों की मां की हत्या हो गई या फिर कुछ बच्चों के माता-पिता ही दोनों जेल में बंद हैं। इन मासूम बच्चों की परवरिश जेल की चारदीवारी के बीच ही हो रही है। यह बच्चे उछल-कूद व शोर शराबों से दूर रहकर मां की उंगली पकड़कर जेल के नियम कायदे निभाने के लिए मजबूर हैं। सपने देखना भी इनके बचपन से गायब है।

जेल परिसर में खेलते बच्चे

केंद्रीय जेल में 17 बच्चे ऐसे भी हैं, जो अपनी मां के साथ अंदर कैद हैं। उनकी मां अपने पिता के साथ हत्या के मामले में जेल में सजा काट रही हैं। दरअसल, उन्हें अपने रिश्तेदारों पर भरोसा नहीं है या फिर उनके परिजन बच्चों को बोझ समझ कर परवरिश करने से इंकार कर दिया था। इसके चलते ही जेल में बंद महिलाओं को बच्चों को साथ रखने की छूट दी गई है।

जेल नियम के अनुसार महिला कैदियों के साथ शून्य से 6 साल तक के बच्चों को ही रखने की छूट है। लिहाजा, जेल प्रबंधन की ओर जेल परिसर में 6 से 18 साल के बच्चों के लिए झूलाघर की व्यवस्था की गई है। यहां उनके रहने-खाने के साथ खेल-कूद व पढ़ने की व्यवस्था की गई है।

बच्चों के लिए जेल परिसर के अंदर ही यह अल्पाकाश मुक्ताकाश झूला घर संचालित है।

जेल अधीक्षक एसके तिग्गा बताते हैं कि जेल नियम के अनुसार मां के साथ रहने वाले मासूम बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद के सारे इंतजाम जेल प्रशासन को करना होता है। यह प्रयास इसलिए किया जाता है ताकि ऐसे मासूम बच्चों पर जेल के माहौल का कोई असर न पड़े। जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों में कैद इन मासूम बच्चों के बचपन को बचाने की पूरी कोशिश की जाती है।

केंद्रीय जेल परिसर में बच्चों के लिए अल्पाकाश मुक्ताकाश झूलाघर की अधीक्षिका मंजू सराफ बताती हैं कि वह 15 साल से बच्चों की देखभाल करती आ रही हैं। दर्जनों बच्चे यहां से अपने घर भी जा चुके हैं। माता-पिता के जेल में आने के बाद किसी बच्चों के परिजन जैसे दादा-दादी-नाना-नानी, चाचा-चाची या फिर अन्य रिश्तेदार मिलने नहीं आते। यहां तक दिवाली पर्व में भी इन बच्चों से कोई मिलने नहीं आता। यही वजह है कि इनके माता-पिता उन्हें यहां अपने साथ रखने के लिए मजबूर रहते हैं।

जेल के बैरक से तय समय के लिए ही बाहर निकलना और मां के साथ जीवन बिताना और उनके साथ कैद हो जाना बच्चों के जीवन में भी यही शामिल हो चुका है। मां बैरक में बंद होती है, तो बच्चे भी। इन्हें देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि क्या ये भी कुछ खाने या लाने की जिद करते होंगे। टॉफी या खिलौने के लिए रोते हुए जमीन पर लेट जाना बच्चों की यह आदत होती है, लेकिन जेल में कैद इन बच्चों के लिए जिद करना भी बहुत मुश्किल है।

अभियान संस्था की अध्यक्ष वाणी राव बताती हैं कि जेल में आते-जाते समय कैदियों के साथ कैद इन बच्चों को देखकर उनके मन में अल्पावास मुक्ताकाश शुरू करने का खयाल आया था। जिला व जेल प्रशासन ने इसके लिए जगह उपलब्ध कराई। तब समाजसेवियों व दानदाताओं के सहयोग से वर्ष 1997 में यहां झूलाघर बनाया गया। उनकी संस्था बच्चों की परवरिश करती है। उनके रहने खाने के साथ ही पढ़ाई व खेल कूद के साथ ही उन्हें जीवन जीने की कला सिखाई जाती है।

GiONews Team

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